लेखनी प्रतियोगिता - त्योहार की खुशी
त्योहार की खुशी
"चलो, चलो, जल्दी करो। देर हो रही है। अभी तक तुम तैयार नही हुई।" निशांत थोड़ा चिड़चिड़ाते हुए बोला। माधवी को बुरा तो लगा पर आज त्योहार के दिन वो अपना मूड नही खराब करना चाहती थी।
हर त्योहार पर लगभग यही होता आया है। माधवी सुबह से उठ कर घर की साफ सफाई करती, फिर नहा धोकर पूजा की तैयारी में लग जाती, फिर नाश्ता ,खाना और आने जाने वालों की आवभगत, इसी मे पूरा दिन निकल जाता। रात होते होते बेचारी रोनी सी सूरत के साथ बिस्तर पर सोने की कोशिश करती। त्योहार वाले दिन की उमंग अब उसे बोझ लगने लगी। घर में सास ससुर, वो, निशांत और उनकी 2 साल की बेटी अनाया , एक भरा पूरा परिवार था, पर नही था, उन लोगों के बीच आपसी तालमेल। हर वक्त माधवी, माधवी की आवाज सुनाई देती थी। और माधवी बेचारी एक टांग पर खड़ी सबकी सुनती और आगे से आगे काम करती रहती।
इतना सब करने के बाद भी माधवी के काम की तारीफ किसी के मुंह से सुनने को नही मिलती।
व्रत त्योहार के दिन तो माधवी को मरने की फुरसत नहीं होती। सासू मां ज्यादातर बीमार रहती, खुद से वो कुछ नही कर पातीं मगर पूजा पाठ सारे नियम से हों इसका पूरा ध्यान रखती थीं। कई बार माधवी के मन में आया कि गैरजरूरी रिवाजों को हटा दिया जाए, मगर उसकी सुनने वाला कौन था। ससुर जी तो बाहर अपने दोस्तों के साथ व्यस्त रहते, वैसे भी सासू मां के बिना वो कुछ नही करते थे और निशांत को अपने ऑफिस के कामों से ही फुरसत नहीं थी। पता नही आखिरी बार कब उन दोनो ने एक साथ सुकून के कुछ पल बिताए थे? उसे तो याद भी नहीं।
ऐसे में वो अपने मन की बात मन में ही रखती।
आज भी कुछ ऐसी ही हालत थी। नवरात्रों के व्रत के बाद आज दशहरा पूजन था। सुबह से ही वो एक एक करके सारे काम निपटा रही थी। मगर बीच बीच में चक्कर भी महसूस हो रहे थे। पर उसने किसी को बताया नही।
निशांत शाम को दशहरा मेला चलने के लिए बोल रहा था, मगर एक बाद एक काम आए ही जा रहे थे। माधवी को तैयार होने का टाइम ही नही मिला।
"अरे यार, कब से बोल रहा हूं, तैयार होने के लिए? जल्दी करो। तुम पता नही सारा दिन क्या करती रहती हो? देर हो जाएगी।" मोबाइल देखते हुए निशांत बोला।
" हो रही हूं तैयार, तुम अनाया को रेडी कर दो।" माधवी ने अलमारी से साड़ी निकालते हुए कहा।
"नही यार, मुझसे नही होगा, तुम ही अनाया को रेडी करो।" निशांत ने तपाक से जवाब दिया और बाहर सोफे पर जाकर बैठ गया।
काफी देर के बाद भी जब माधवी अनाया के साथ बाहर नही आई, तो निशांत झुंझलाते हुए कमरे में गया। कमरे में माधवी बेहोश पड़ी हुई थी और अनाया उसके पास बैठी हुई अपने खिलौने से खेल रही थी।
निशांत एकदम से सकपकाया और तुरंत उसने डॉक्टर को कॉल लगाया।
डॉक्टर ने आकर माधवी की जांच की और उसे इंजेक्शन लगाया। थोड़ी देर में माधवी को होश आ गया। डॉक्टर ने निशांत से कहा, " माधवी की बहुत ज्यादा कमजोरी आ गई है। इसके शरीर में पहले से ही खून की कमी है और नवरात्रि के दिनों में व्रत रखने से कमजोरी बहुत बढ़ गई है। इसको आराम की सख्त जरूरत है। अगर इसने आराम नही किया तो हालत और बिगड़ सकती है। इसका खयाल रखिएगा। मैं चलती हूं।"
डॉक्टर के जाने के बाद निशांत ने माधवी का हाथ अपने हाथों में लिया और कहा," I am sorry,माधवी। मैं अपने में इतना खो गया कि तुम्हारे हालात और जज़्बात समझ ही नहीं पाया। तुम अपने पूरे तन, मन से मेरे और मेरे परिवार का ध्यान रखती हो। तुम्हे कितनी तकलीफ हुई, तुमने कभी कुछ नही कहा। मगर आज मैं तुमसे वादा करता हूं कि मैं भी तुम्हारा पूरा ध्यान रखूंगा। तुमसे ही तो मेरी दुनिया है।" माधवी निशांत की बातें सुन उसके सीने से लग गई और कहने लगी," निशांत, आज सच में मैं त्योहार की खुशी अपने अंदर महसूस कर रही हूं।"
सच में, एक औरत की जिंदगी अपने घर परिवार के चारों ओर घूमती है, मगर उसको भी एक सहारा चाहिए जो उससे कहे, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।
प्रियंका वर्मा
24/10/23
Mohammed urooj khan
25-Oct-2023 12:43 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
Reply
Punam verma
25-Oct-2023 09:13 AM
Very nice👍
Reply
Abhinav ji
25-Oct-2023 08:43 AM
Very nice 👍
Reply